इस लेख में लेखक अभय कुमार ने पेरिस ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की सफलता और उसकी संघर्षशीलता पर प्रकाश डाला है। विनेश फोगाट के साथ हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के बाद हॉकी टीम द्वारा कांस्य पदक जीतने को उन्होंने भारतीय खेल प्रेमियों के लिए एक मरहम की तरह बताया है। भारतीय टीम ने स्पेन को 2-1 से हराकर कांस्य पदक हासिल किया, जो पिछले ओलंपिक में भी हासिल किया गया था।
लेखक ने बताया कि भारतीय हॉकी टीम ने मजबूत टीमों को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी, हालांकि एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी की अनुपस्थिति के कारण जर्मनी से हार गई। इसके बावजूद, टीम ने कांस्य पदक जीतकर भारतीय खेल प्रेमियों को गर्व का अनुभव कराया।
लेख में कप्तान हरमनप्रीत सिंह की प्रशंसा की गई है, जिन्होंने निर्णायक गोल किए और टीम की जीत सुनिश्चित की। अमित रोहिदास की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने अपनी उपस्थिति से टीम को मजबूती दी।
लेखक ने भारतीय हॉकी के गौरवमयी इतिहास को भी याद किया, विशेष रूप से मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में बर्लिन ओलंपिक की उपलब्धियों का जिक्र किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारतीय हॉकी टीम निकट भविष्य में अपनी स्वर्णिम परंपराओं को फिर से दोहराएगी और नए दिग्गज खिलाड़ी उभरेंगे।
अंत में, पी.आर. श्रीजेश की विदाई का उल्लेख किया गया, जिन्होंने अपनी बेहतरीन गोलकीपिंग से टीम की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्रीजेश ने स्पेन के हमलों को विफल कर भारतीय टीम की जीत को सुनिश्चित किया, जिससे उनका ओलंपिक करियर शानदार तरीके से समाप्त हुआ।