चौपाल संवाद, ग्राम छीमी, खागा (फतेहपुर)
बिना शिक्षित समाज के किसी भी देश का विकास असंभव है। शिक्षा के बिना विकास की कल्पना बेमानी है। भारत में आजादी के बाद से ही शिक्षा का स्तर गिरता चला आ रहा है, और सरकारी पाठशालाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। शिक्षा के इस गिरते स्तर को सुधारने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जानी है।

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य यह था कि सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। हालांकि, वास्तविकता में शिक्षा की गुणवत्ता में कोई विशेष सुधार नहीं दिख रहा है। विभिन्न योजनाओं के बावजूद, शिक्षा का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से मिड-डे-मील, वर्दी, स्वेटर, जूता-मोजा आदि की व्यवस्था की गई है। लेकिन, ये योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही हैं। कई प्राथमिक विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन खाने से बच्चों के बीमार पड़ने की घटनाएं सामने आई हैं, और कई बार शिक्षक ही गायब होते हैं।

ताजा मामला खागा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले ग्राम छीमी का है, जहां मिड-डे-मील के तहत बच्चों को दिए जा रहे भोजन में कंकड़-पत्थर मिले। ग्रामवासियों का कहना है कि बच्चों को बेहद खराब गुणवत्ता का भोजन दिया जा रहा है, जिसके खिलाफ उन्होंने विरोध दर्ज कराया है।

यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या गरीबों के मासूम बच्चों को दूषित भोजन दिया जाएगा, या फिर यह योजना भी भ्रष्टाचार का शिकार हो गई है। अब देखना यह है कि उच्चाधिकारी कब नींद से जागेंगे और इस गंभीर समस्या का समाधान करेंगे।